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दादा लखमी चन्द जी

कलियुग

(राजकवि दादा लखमी चन्द जी)


(कुछ * वाले शब्दों के अर्थ अंत में दिए गए हैं)

समद ऋषि जी ज्ञानी हो-गे जिसनै वेद विचारा ।

वेदव्यास जी कळूकाल* का हाल लिखण लागे सारा ॥ टेक ॥


एक बाप के नौ-नौ बेटे, ना पेट भरण पावैगा -

बीर-मरद हों न्यारे-न्यारे, इसा बखत आवैगा ।

घर-घर में होंगे पंचायती, कौन किसनै समझावैगा -

मनुष्य-मात्र का धर्म छोड़-कै, धन जोड़ा चाहवैगा ।


कड़ कै न्यौळी बांध मरैंगे, मांग्या मिलै ना उधारा* ॥1॥

वेदव्यास जी कळूकाल का हाल लिखण लागे सारा ।

1

नृत्य कला

नाचने-गाने का और लखमीचंद के सांगों का विरोध भी बहुत होता था, क्योंकि उन दिनों में आर्यसमाज का प्रभाव बहुत बढ़ गया था । आत्मविश्वासी पंडित जी ने विरोधों का जमकर मुकाबला किया । पुरुषों द्वारा स्त्रियों का भेष धारण करने की सफाई देते थे : इन मर्दों का के दोष भला धारण में भेष जनाना । इस बारे में उनकी यह रागनी पेश है :


लाख चौरासी जीया जून में नाचै दुनियां सारी

नाचण मैं के दोष बता या अक्कल की हुशियारी...


सबतैं पहलम विष्णु नाच्या पृथ्वी ऊपर आकै

फिर दूजै भस्मासुर नाच्या सारा नाच नचा कै

गौरां आगै शिवजी नाच्या, ल्याया पार्वती नै ब्याह-कै

जल के ऊपर ब्रह्मा नाच्या कमल फूल के मांह-कै

ब्रह्मा जी नै नाच-नाच कै रची सृष्टि सारी...

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